प्रवासी >> बेगाने अपने बेगाने अपनेविष्णुचन्द्र शर्मा
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उपन्यास साम्राज्यवाद के अपने ही घर की टूटन और आपसी बेगानगी एकाकीपन पर आधारित है....
Begane Apne a hindi book by Vishnu Chandra Sharma -बेगाने अपने - विष्णुचन्द्र शर्मा
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचन्द शर्मा का ताज़ा उपन्यास है-बेगाने अपने, जो साम्राज्यवाद के अपने ही घर की टूटन और आपसी बेगानगी, एकाकीपन का खोजी दृष्टि से अंकन करता है। अमरीका में जा बसे भारतीय हों या दूसरे देश, के नागरिक अथवा अमरीकीवासी हर पात्र का अपना द्वंद्व है, संघर्ष है। सारे चातुर्य और कुटिलता के बावजूद अमरीका के नागरिक हताश और निराश हैं। उपन्यास का यह उद्दरण समूची अमरीका की पूरी सच्चाई बयान कर देता हैः
‘‘यहाँ न्यूयार्क में हरेक की यह निजी समस्या है। इस समाज में व्यक्ति के लिए सिमट जाना आवश्यक है। ‘सिमटे तो दिले-आशिक, फैले तो जमाना है।’ यहाँ फैलाव नहीं है। यहाँ सिमटा हुआ आशिक बूढ़ा भी है, युवा भी है। बस पर सब-वे में, सड़क पर तुम्हें ऐसे चेहरे मिल जाएँगे, जो जीवन-निर्वाह के लिए सिमट गया है। यह डर का सिमटना भी है। बड क्लेयर का भाई है, वह डरकर एबनार्मल होता जा कहा है। क्लेयर डरकर धन कमाने के लिए जाने देती है। एक दृष्टिकोण से यह निष्ठुरता है। अपने को मारने की निष्ठुर प्रक्रिया है मित्र। यहाँ की सभ्यता के दो दरवाजे हैं, एक दरवाजा साइकिल के पास ले जाता है। दूसरा दरवाजा अध्यात्म की दुकानों में व्यक्ति को पहुँचा देता है।’’
इस बेहद क्रूर और दहशत भरे समय में विश्वास जैसे शब्द लगभग दुर्लभ हो गए हैं। और इसी समय जब किसी रचनाकार के यहाँ ऐसे ही ढेर सारे शब्दों की पैरवी मिले तो निस्संदेह ऐसी रचना स्वीकृति पाएगी, क्योंकि ऐसी रचना और ऐसे रचनाकार विश्वसनीय होते हैं। जो लोग विष्णु जी को निकट से जानते हैं, उनकी विविध विधागत रचनाओं का आस्वादन करते हैं, वे इस कथन के मर्म को अधिक समझेंगे कि वह एक विश्वसनीय रचनाकार हैं, क्योंकि जिन मूल्यों को वे अपनी कहानियों, कविताओं और उपन्यास आदि में सुरक्षित रखते हैं, उन्हीं मूल्यों को वे जीवन में भी बचाते हैं।
‘‘यहाँ न्यूयार्क में हरेक की यह निजी समस्या है। इस समाज में व्यक्ति के लिए सिमट जाना आवश्यक है। ‘सिमटे तो दिले-आशिक, फैले तो जमाना है।’ यहाँ फैलाव नहीं है। यहाँ सिमटा हुआ आशिक बूढ़ा भी है, युवा भी है। बस पर सब-वे में, सड़क पर तुम्हें ऐसे चेहरे मिल जाएँगे, जो जीवन-निर्वाह के लिए सिमट गया है। यह डर का सिमटना भी है। बड क्लेयर का भाई है, वह डरकर एबनार्मल होता जा कहा है। क्लेयर डरकर धन कमाने के लिए जाने देती है। एक दृष्टिकोण से यह निष्ठुरता है। अपने को मारने की निष्ठुर प्रक्रिया है मित्र। यहाँ की सभ्यता के दो दरवाजे हैं, एक दरवाजा साइकिल के पास ले जाता है। दूसरा दरवाजा अध्यात्म की दुकानों में व्यक्ति को पहुँचा देता है।’’
इस बेहद क्रूर और दहशत भरे समय में विश्वास जैसे शब्द लगभग दुर्लभ हो गए हैं। और इसी समय जब किसी रचनाकार के यहाँ ऐसे ही ढेर सारे शब्दों की पैरवी मिले तो निस्संदेह ऐसी रचना स्वीकृति पाएगी, क्योंकि ऐसी रचना और ऐसे रचनाकार विश्वसनीय होते हैं। जो लोग विष्णु जी को निकट से जानते हैं, उनकी विविध विधागत रचनाओं का आस्वादन करते हैं, वे इस कथन के मर्म को अधिक समझेंगे कि वह एक विश्वसनीय रचनाकार हैं, क्योंकि जिन मूल्यों को वे अपनी कहानियों, कविताओं और उपन्यास आदि में सुरक्षित रखते हैं, उन्हीं मूल्यों को वे जीवन में भी बचाते हैं।
1
एयरपोर्ट पर विलियम वॉरमैन और संदीप का अनुराग ने काफी समय तक इंतजार किया था। केनेडी एयरपोर्ट बड़ा और काफी दूर तक फैला था। कई बार एक हिस्से से घूमते हुए अनुराग दूसरे हिस्से में हो आया। हवाई जहाज में उसकी सीट के बगल में बैठी थी मार्गरेट दुकासेस। गोलाई लिए हँसमुख चेहरा। आँखें बेहद मुखर। उसके साथ उसका पति था यॉल दुकासेस। मार्गरेट ने अनुराग को गौर से देखा था। उसका पोर्ट्रेट बनाया था।
फिर उसने कहा था, ‘साइन कर दें।’ अनुराग उसके बाद से दोनों का दोस्त बन गया था। बस ने उसे 42वीं स्ट्रीट में उतारा था। चारों ओर देख कर वह घबराया था। अनुराग ने ढेर से हब्शी लोगों को देखा था। मार्गरेट बस से नीचे उतरी थी। उसे सब वे का रास्ता उसी ने बताया था। वह सब वे से 14 वीं स्ट्रीट स्टेशन आया था। वह स्टेशन की भीतरी दुनिया में था। स्टेशन से ऊपर थे कतार में ऊँचे मकान सब का भिन्न आकार। उसे अब मकान नंबर की तलाश थी। पटरी से दुकान तक लोग शराब पीकर झूम रहे थे। फिर भी एक आदमी था। उसी ने बताया था, "घंटी है, इसे दबा दें।"
लकड़ी की सीढ़ी पर कुछ समय बाद जूते की आवाज़ सुनी थी अनुराग ने। अनुराग ने दरवाज़ा खुलने पर अपना नाम बताया था। विलियम वॉरमैन की आँखें चौकन्नी थीं। मन संशयशील। चेहरा जरूर भरा-भरा। कद मझोला आँखें विलियम वॉरमैन की चैकन्नी हैं। अनुराग को लगा था मन जरूर उसका संशयशील है।
लकड़ी की सीढ़ी उस दिन दोनों चढ़ रहे थे। सिर्फ जूते की चर-मर आवाज़ थी। बाकी थी नीचे की खाली सीढ़ियाँ। लकड़ी की सीढ़ी न होती तो अनुराग को यह सन्नाटा इतना खलता भी नहीं। पहली मंजिल की सीढ़ियों का मोड़ आया। वहीं विलियम ने घूमकर अनुराग को देखा था। एक दरवाज़ा बंद था। दूसरे की ताली विलियम ने खोली थी। ताला खोलने तक दोनों तनाव में थे। खासतौर पर सीढ़ी जहाँ मुड़ी थी, वहाँ एक गुलदस्ता था। पत्ते उसके हरे थे। विलियम ने अपने एपार्टमेंट का दरवाजा खोला था। इशारे से कहा था ‘चुप’। चुप का इशारा भी उसने ओठों से नहीं, आँखों से किया था। छोटी आँखें और सिमट गई थीं उसके चेहरे पर।
ताला खोल कर फोन के पास रखी एक ताली का गुच्छा विलियम ने अनुराग को दिया था। उसी दिन अनुराग को पता लगा था यहाँ एक एक एपार्टमेंट की कई-कई तालियाँ होती हैं। विधान ने फोन पर उसी दिन कहा था, "विल केवल विल है। तुम्हारा शिष्य।" विल ने भी यही बात दुहरा दी थी। पहली बात उसने हिदायत के तौर पर अनुराग को बताई थी, "कोई पूछे भी, तो इस पुराने स्थापत्य के मकान में उसे कुछ बताएँ नहीं। मकान मालिक से ज्यादा बातचीत कभी न कीजिएगा।"
फिर उसने कहा था, ‘साइन कर दें।’ अनुराग उसके बाद से दोनों का दोस्त बन गया था। बस ने उसे 42वीं स्ट्रीट में उतारा था। चारों ओर देख कर वह घबराया था। अनुराग ने ढेर से हब्शी लोगों को देखा था। मार्गरेट बस से नीचे उतरी थी। उसे सब वे का रास्ता उसी ने बताया था। वह सब वे से 14 वीं स्ट्रीट स्टेशन आया था। वह स्टेशन की भीतरी दुनिया में था। स्टेशन से ऊपर थे कतार में ऊँचे मकान सब का भिन्न आकार। उसे अब मकान नंबर की तलाश थी। पटरी से दुकान तक लोग शराब पीकर झूम रहे थे। फिर भी एक आदमी था। उसी ने बताया था, "घंटी है, इसे दबा दें।"
लकड़ी की सीढ़ी पर कुछ समय बाद जूते की आवाज़ सुनी थी अनुराग ने। अनुराग ने दरवाज़ा खुलने पर अपना नाम बताया था। विलियम वॉरमैन की आँखें चौकन्नी थीं। मन संशयशील। चेहरा जरूर भरा-भरा। कद मझोला आँखें विलियम वॉरमैन की चैकन्नी हैं। अनुराग को लगा था मन जरूर उसका संशयशील है।
लकड़ी की सीढ़ी उस दिन दोनों चढ़ रहे थे। सिर्फ जूते की चर-मर आवाज़ थी। बाकी थी नीचे की खाली सीढ़ियाँ। लकड़ी की सीढ़ी न होती तो अनुराग को यह सन्नाटा इतना खलता भी नहीं। पहली मंजिल की सीढ़ियों का मोड़ आया। वहीं विलियम ने घूमकर अनुराग को देखा था। एक दरवाज़ा बंद था। दूसरे की ताली विलियम ने खोली थी। ताला खोलने तक दोनों तनाव में थे। खासतौर पर सीढ़ी जहाँ मुड़ी थी, वहाँ एक गुलदस्ता था। पत्ते उसके हरे थे। विलियम ने अपने एपार्टमेंट का दरवाजा खोला था। इशारे से कहा था ‘चुप’। चुप का इशारा भी उसने ओठों से नहीं, आँखों से किया था। छोटी आँखें और सिमट गई थीं उसके चेहरे पर।
ताला खोल कर फोन के पास रखी एक ताली का गुच्छा विलियम ने अनुराग को दिया था। उसी दिन अनुराग को पता लगा था यहाँ एक एक एपार्टमेंट की कई-कई तालियाँ होती हैं। विधान ने फोन पर उसी दिन कहा था, "विल केवल विल है। तुम्हारा शिष्य।" विल ने भी यही बात दुहरा दी थी। पहली बात उसने हिदायत के तौर पर अनुराग को बताई थी, "कोई पूछे भी, तो इस पुराने स्थापत्य के मकान में उसे कुछ बताएँ नहीं। मकान मालिक से ज्यादा बातचीत कभी न कीजिएगा।"
2
अपना एपार्टमेंट उस दिन जैसा रहस्यमय अनुराग को लगा था, विल क्लेयर बड मोहन और टीना से मिलने पर ऐसा कुछ रहस्य फिर उसे नजर नहीं आया था। सब के साथ पहली बार एटलांटिक सिटी’ जाते समय अनुराग ने यही बात विल से कही भी थी। संदीप, एटलांटिक सिटी की बस पर बैठा था 42 वीं स्ट्रीट में। यह बड़ा बस अड्डा है। क्लेयर ने अपनी ओर से सफाई दी थी, "यह जगह आपके लायक नहीं है।"
"मेरे..." विस्मयपूर्ण उसने पूछा था। कभी क्लेयर सुंदरी रही होगी। लंबी काठी। गोरा रंग। मैक्सकी शरीर गठन। अंग सौष्ठव के अलावा उसमें एक मानवीय गुण है जो आकर्षित करता है।
"नहीं, मैं उदारतावश यह नहीं कह रही हूँ। जह जगह ब्लू फिल्मों सेक्स शॉपों यानी अपराध की दुनिया है। अमेरिकी सभ्यता का तहखाना है यह।" क्लेयर ने कहा और अपने भाई बड की ओर देखा।
बड़ का यहीं कभी दफ्तर था। बीसवीं मंजिल पर कॉस्मैटिक कंपनी में उसकी अपनी कुर्सी थी। तब संदीप और क्लेयर भी पास की बिल्डिंग में दूसरी कॉस्मेटिक कंपनी में काम करते थे।
अचानक बस चलने पर संदीप ने क्लेयर से कुछ कहा। अनुराग सुन नहीं सका। संदीप के जवाब में लख्खी थी, यह सबने महसूस किया। उसने क्लेयर और बड़ को हँसते हुए सुना। फिर भी अपनी सफाई दी "एटलांटिक सिटी में जुआ खेलने नहीं जा रहा हूँ।
"तो सागर देखने जा रहे होगे।" क्लेयर ने व्यंग्य किया।
बड़ ने उसी समय से समझ लिया था, बहिन का मूड नार्मल नहीं है। विस्तार से 42 वीं स्ट्रीट का परिचय जब बहिन अनुराग को दे रही थी। तब वाकई उसने अपनी बाँह से जैसे गंदे माहौल से बचा लेना चाहा था अनुराग को। तभी बड़ कुछ कहना चाहता था। उसे लगा थाक्लेयर और संदीप के बीच कुछ बंद है।
कई पर्दे पड़े हुए हैं। कभी मित्रता के बीच दोनों की नीयत पर्दे डालने की नहीं थी। अब न दोनों दफ्तर से वापस आने पर अपने एपार्टमेंट को सँवारते हैं। न मिसेज कौर के रेस्तरा में ‘ड्रिंक’ करने जाते हैं। कभी पब में में क्लेयर खूब नाचती थी। जैसे मैक्सिकों के सागर की वह मछलियों के साथ वह तैर रही हो। संदीप तब मुझे भी खींच कर पब ले जाता था। अँधेरा धीमा। नंगी नाचती देह और नशा। हरटेबुल पर नृत्यांगना कुछ झुकती थी। ग्राहकों को हँसाने की कुछ कोशिश करती थी। क्लेयर ऐसे वक्त संदीप की गोद में छिप जाती थी। तब भी संदीप क्लेयर के बालों में उंगलियाँ चलाता था।
"मैं सिर्फ सागर भी देखता रहा हूं वह मेरा मित्र लगता है।"
"मित्र और तुम्हारा।" क्लेयर उपेक्षा से हँसी थी।
अनुराग ने महसूस किया दोनों के बीच पति-पत्नी का आत्मीय नाता नहीं है। अब दोनों अपने-अपने अस्तित्व के प्रति बेहद सावधान हैं। सीट से थोड़ा उठा है संदीप। थकान और खीझ उसके चेहरे पर विल और मोहन ने भी देखी। टीना ने अपने बैग से थर्मस खोलकर काफी का एक कप अनुराग को दिया। इससे भी तनाव कम नहीं हुआ।
"मैं सिर्फ अनुराग के नाते एटलांटिक सिटी जा रहा हूँ।"
"सफाई क्या सागर की लहरों को दे रहे हो।" क्लेयर ने खीझकर जवाब दिया। टीना का दिया काफी का प्याला भी क्लेयर ने उसे वापस लौटा दिया। विल ने पहले ही मना कर दिया था। वह बाहर कहीं कुछ नहीं खाता पीता है।
क्लेयर और संदीप की प्रवृत्ति भिन्न है। दोनों अनुभूति संपन्न हैं। दोनों ने शिक्षा भी कई स्तर की पाई है। संदीप किसी को आघात नहीं पहुँचाता। अपने अनजाने में यदि वह किसी को चोट पहुँचाता भी है, तो अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण भी देता है।
अनुराग महसूस करता रहा कि क्लेयर के प्रति अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण संदीप उसे न देकर, मुझे दे रहा है। यही उसे शिक्षित और अनुभव संपन्न इंसान की स्वाभाविक प्रकृति है। वह मैत्री की गहराई से क्लेयर को और उसे अपना मानता है। उसने क्लेयर को सफाई नहीं दी। न वह एटलांटिक सिटी में बस रुकने पर उसके पार गया ही। जुए के कई अड्डों में वह घूम जरूर आया। कुछ कूपन भरे भी उसने। सागर चट पर बालू में लोग लेटे थे। वह एक बैंच पर वहीं बैठ गया।
विल अनजाना सा अलग बैंच पर बैठा रहा। टीना की मोहन ने इस बीच कई फोटो फींची।
संदीप ने अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण देते हुए कहा अनुराग से "मैंने आज तक कई भले लोग खोए हैं। वे भी शिक्षित थे। वे अनुभव संपन्न भी थे। मेरे बिल्कुल अपने भी थे। जानबूझकर मैंने विधान को, क्लेयर को भी कभी दुःख नहीं दिया। विधान के बड़प्पन पर मैंने कभी शक भी नहीं किया। मैं इस काम को छोटा काम मानता हूँ। छोटा मैं नहीं बनना चाहता।"
क्लेयर तब मेरे इतने करीब नहीं आई थी। मेरा एक रूम का एपार्टमेंट था। कमरे में वैसी ही अस्त व्यस्तता रहती थी, जैसी मेरे जीवन में आज भी है। कपड़े, प्लेटें पुस्तकें संदूक सभी कमरे में बिखरा रहता था। दफ्तर से कभी कभी तब क्लेयर वापस मेरे इसी एपार्टमेंट में आती थी। तब वही मेरे बैचलर जीवन को सँवारते हुए एक एक चीज मन से सजाती थी। कहीं मैं भीतर तक क्लेयर के प्रति आज भी कृतज्ञ हूँ। आज मैं अपने व्यवहार की सफाई तुम्हें नहीं देता। मुझे कैफियत देनी पड़ी।
कहीं खोट मेरे भीतर है अनुराग। इसलिए मैं जानबूझ कर ऐसी कोई गलती अब नहीं करना चाहता हूँ कि तुम्हें या क्लेयर को मैं खो दूँ। इस अपने व्यवहार से मैंने कई बार मित्रों को खोने का जोखिम उठाया भी है। बालू का मैदान, उमड़ता हुआ सागर सन बाथ लेती नारी पुरुष की देह और बाल तट पर बनी सड़क। क्लेयर ने तेजी से सब को देखा। लॉट्री की टिकट वह सब के लिए खरीद कर लाई थी। संदीप ने अपनी लॉट्री की टिकट उससे ले ली। डालर से कुछ नंबर उसने घिसे।
लॉट्री के नंबरों को क्लेयर ने गौर से देखा, पर कहा कुछ नहीं। टीना ने अपनी लॉट्री की टिकट भी मोहन को दे दी। मोहन उसका पति है। वह इधर भारी-भरकम हो गया है। चेहरा गोल। हँसने पर मोहन मक्खन का लड्डू लगता है। उसने क्लेयर से सफाई दी "अपना भाग्य ही मैंने टीना के आगे परोस दिया है।" उसकी बात पर क्लेयर का चेहरा तन गया। वह कुछ छिपा नहीं सकती है। उसने टीना से पूछा, "आपका भाग्य है मोहन ?" फिर व्यंग्य से हँसी।
टीना सूट पहने है। कसी हुई साँवली देह। चेहरा भरा-भरा जहाँ तृप्तिकर संतोष का भाव झलक रहा है, कहाँ भाग्य तो पति-पत्नी का होता ही है।"
क्लेयर ने इस पर फिर व्यंग्य किया "आपके भारत में पति, पत्नी का भाग्यविधाता होता होगा।" उसने संदीप को देखा। और सफाई दी, "मेरी माँ ने कभी मेरे पिताजी को भी अपना लॉट्री का नंबर तक नहीं बताया। हाँ, माँ मुझे आज भी सपने में आकर लॉट्री की जीत का नंबर बता जाती है।"
अनुराग को पता था इस विषय में क्लेयर के पास माँ के अनेक मोहक सपने हैं। जो सपने माँ नहीं उस तक भेज पाती है, उन्हें भारत के साईं बाबा सपने में उसे बता देते हैं। क्लेयर की ओर देखा अनुराग ने, "माँ लगता है तुम्हें आज लाट्री की जीत का नंबर बताने नहीं आई थीं।"
"नहीं" क्लेयर ने भाई को देखा। वह सागर तट पर पसरा है। बालों से उसका चेहरा भरा-भरा है।’’
"तो साईं बाबा ने तुम्हें जल्दी धनी बनने का कोई मंत्र नहीं सिखाया है।"
अनुराग ने हँसते हुए कहा।
संदीप ने कहा, "हाँ, इसे जल्दी से जल्दी धनी बनना है।"
"साईं बाबा और आचार्य रजनीश यहाँ भी हमारी धर्म भावना को आँच दे रहे हैं।" टीना ने सफाई दी।
"यहाँ सभी धर्म की दुकानें हैं। उनका काम भी बड़ा उपयोगी है।" अनुराग ने कहा।
विल को अनुराग का यह सवाल बहुत पसंद आया। वह उठकर उसके पास आया। क्लेयर ने नाराजगी में एटलांटिक सिटी में सब का साथ छोड़ दिया। शाम तक वह अकेले ही जुआ खेलती रही।
"मेरे..." विस्मयपूर्ण उसने पूछा था। कभी क्लेयर सुंदरी रही होगी। लंबी काठी। गोरा रंग। मैक्सकी शरीर गठन। अंग सौष्ठव के अलावा उसमें एक मानवीय गुण है जो आकर्षित करता है।
"नहीं, मैं उदारतावश यह नहीं कह रही हूँ। जह जगह ब्लू फिल्मों सेक्स शॉपों यानी अपराध की दुनिया है। अमेरिकी सभ्यता का तहखाना है यह।" क्लेयर ने कहा और अपने भाई बड की ओर देखा।
बड़ का यहीं कभी दफ्तर था। बीसवीं मंजिल पर कॉस्मैटिक कंपनी में उसकी अपनी कुर्सी थी। तब संदीप और क्लेयर भी पास की बिल्डिंग में दूसरी कॉस्मेटिक कंपनी में काम करते थे।
अचानक बस चलने पर संदीप ने क्लेयर से कुछ कहा। अनुराग सुन नहीं सका। संदीप के जवाब में लख्खी थी, यह सबने महसूस किया। उसने क्लेयर और बड़ को हँसते हुए सुना। फिर भी अपनी सफाई दी "एटलांटिक सिटी में जुआ खेलने नहीं जा रहा हूँ।
"तो सागर देखने जा रहे होगे।" क्लेयर ने व्यंग्य किया।
बड़ ने उसी समय से समझ लिया था, बहिन का मूड नार्मल नहीं है। विस्तार से 42 वीं स्ट्रीट का परिचय जब बहिन अनुराग को दे रही थी। तब वाकई उसने अपनी बाँह से जैसे गंदे माहौल से बचा लेना चाहा था अनुराग को। तभी बड़ कुछ कहना चाहता था। उसे लगा थाक्लेयर और संदीप के बीच कुछ बंद है।
कई पर्दे पड़े हुए हैं। कभी मित्रता के बीच दोनों की नीयत पर्दे डालने की नहीं थी। अब न दोनों दफ्तर से वापस आने पर अपने एपार्टमेंट को सँवारते हैं। न मिसेज कौर के रेस्तरा में ‘ड्रिंक’ करने जाते हैं। कभी पब में में क्लेयर खूब नाचती थी। जैसे मैक्सिकों के सागर की वह मछलियों के साथ वह तैर रही हो। संदीप तब मुझे भी खींच कर पब ले जाता था। अँधेरा धीमा। नंगी नाचती देह और नशा। हरटेबुल पर नृत्यांगना कुछ झुकती थी। ग्राहकों को हँसाने की कुछ कोशिश करती थी। क्लेयर ऐसे वक्त संदीप की गोद में छिप जाती थी। तब भी संदीप क्लेयर के बालों में उंगलियाँ चलाता था।
"मैं सिर्फ सागर भी देखता रहा हूं वह मेरा मित्र लगता है।"
"मित्र और तुम्हारा।" क्लेयर उपेक्षा से हँसी थी।
अनुराग ने महसूस किया दोनों के बीच पति-पत्नी का आत्मीय नाता नहीं है। अब दोनों अपने-अपने अस्तित्व के प्रति बेहद सावधान हैं। सीट से थोड़ा उठा है संदीप। थकान और खीझ उसके चेहरे पर विल और मोहन ने भी देखी। टीना ने अपने बैग से थर्मस खोलकर काफी का एक कप अनुराग को दिया। इससे भी तनाव कम नहीं हुआ।
"मैं सिर्फ अनुराग के नाते एटलांटिक सिटी जा रहा हूँ।"
"सफाई क्या सागर की लहरों को दे रहे हो।" क्लेयर ने खीझकर जवाब दिया। टीना का दिया काफी का प्याला भी क्लेयर ने उसे वापस लौटा दिया। विल ने पहले ही मना कर दिया था। वह बाहर कहीं कुछ नहीं खाता पीता है।
क्लेयर और संदीप की प्रवृत्ति भिन्न है। दोनों अनुभूति संपन्न हैं। दोनों ने शिक्षा भी कई स्तर की पाई है। संदीप किसी को आघात नहीं पहुँचाता। अपने अनजाने में यदि वह किसी को चोट पहुँचाता भी है, तो अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण भी देता है।
अनुराग महसूस करता रहा कि क्लेयर के प्रति अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण संदीप उसे न देकर, मुझे दे रहा है। यही उसे शिक्षित और अनुभव संपन्न इंसान की स्वाभाविक प्रकृति है। वह मैत्री की गहराई से क्लेयर को और उसे अपना मानता है। उसने क्लेयर को सफाई नहीं दी। न वह एटलांटिक सिटी में बस रुकने पर उसके पार गया ही। जुए के कई अड्डों में वह घूम जरूर आया। कुछ कूपन भरे भी उसने। सागर चट पर बालू में लोग लेटे थे। वह एक बैंच पर वहीं बैठ गया।
विल अनजाना सा अलग बैंच पर बैठा रहा। टीना की मोहन ने इस बीच कई फोटो फींची।
संदीप ने अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण देते हुए कहा अनुराग से "मैंने आज तक कई भले लोग खोए हैं। वे भी शिक्षित थे। वे अनुभव संपन्न भी थे। मेरे बिल्कुल अपने भी थे। जानबूझकर मैंने विधान को, क्लेयर को भी कभी दुःख नहीं दिया। विधान के बड़प्पन पर मैंने कभी शक भी नहीं किया। मैं इस काम को छोटा काम मानता हूँ। छोटा मैं नहीं बनना चाहता।"
क्लेयर तब मेरे इतने करीब नहीं आई थी। मेरा एक रूम का एपार्टमेंट था। कमरे में वैसी ही अस्त व्यस्तता रहती थी, जैसी मेरे जीवन में आज भी है। कपड़े, प्लेटें पुस्तकें संदूक सभी कमरे में बिखरा रहता था। दफ्तर से कभी कभी तब क्लेयर वापस मेरे इसी एपार्टमेंट में आती थी। तब वही मेरे बैचलर जीवन को सँवारते हुए एक एक चीज मन से सजाती थी। कहीं मैं भीतर तक क्लेयर के प्रति आज भी कृतज्ञ हूँ। आज मैं अपने व्यवहार की सफाई तुम्हें नहीं देता। मुझे कैफियत देनी पड़ी।
कहीं खोट मेरे भीतर है अनुराग। इसलिए मैं जानबूझ कर ऐसी कोई गलती अब नहीं करना चाहता हूँ कि तुम्हें या क्लेयर को मैं खो दूँ। इस अपने व्यवहार से मैंने कई बार मित्रों को खोने का जोखिम उठाया भी है। बालू का मैदान, उमड़ता हुआ सागर सन बाथ लेती नारी पुरुष की देह और बाल तट पर बनी सड़क। क्लेयर ने तेजी से सब को देखा। लॉट्री की टिकट वह सब के लिए खरीद कर लाई थी। संदीप ने अपनी लॉट्री की टिकट उससे ले ली। डालर से कुछ नंबर उसने घिसे।
लॉट्री के नंबरों को क्लेयर ने गौर से देखा, पर कहा कुछ नहीं। टीना ने अपनी लॉट्री की टिकट भी मोहन को दे दी। मोहन उसका पति है। वह इधर भारी-भरकम हो गया है। चेहरा गोल। हँसने पर मोहन मक्खन का लड्डू लगता है। उसने क्लेयर से सफाई दी "अपना भाग्य ही मैंने टीना के आगे परोस दिया है।" उसकी बात पर क्लेयर का चेहरा तन गया। वह कुछ छिपा नहीं सकती है। उसने टीना से पूछा, "आपका भाग्य है मोहन ?" फिर व्यंग्य से हँसी।
टीना सूट पहने है। कसी हुई साँवली देह। चेहरा भरा-भरा जहाँ तृप्तिकर संतोष का भाव झलक रहा है, कहाँ भाग्य तो पति-पत्नी का होता ही है।"
क्लेयर ने इस पर फिर व्यंग्य किया "आपके भारत में पति, पत्नी का भाग्यविधाता होता होगा।" उसने संदीप को देखा। और सफाई दी, "मेरी माँ ने कभी मेरे पिताजी को भी अपना लॉट्री का नंबर तक नहीं बताया। हाँ, माँ मुझे आज भी सपने में आकर लॉट्री की जीत का नंबर बता जाती है।"
अनुराग को पता था इस विषय में क्लेयर के पास माँ के अनेक मोहक सपने हैं। जो सपने माँ नहीं उस तक भेज पाती है, उन्हें भारत के साईं बाबा सपने में उसे बता देते हैं। क्लेयर की ओर देखा अनुराग ने, "माँ लगता है तुम्हें आज लाट्री की जीत का नंबर बताने नहीं आई थीं।"
"नहीं" क्लेयर ने भाई को देखा। वह सागर तट पर पसरा है। बालों से उसका चेहरा भरा-भरा है।’’
"तो साईं बाबा ने तुम्हें जल्दी धनी बनने का कोई मंत्र नहीं सिखाया है।"
अनुराग ने हँसते हुए कहा।
संदीप ने कहा, "हाँ, इसे जल्दी से जल्दी धनी बनना है।"
"साईं बाबा और आचार्य रजनीश यहाँ भी हमारी धर्म भावना को आँच दे रहे हैं।" टीना ने सफाई दी।
"यहाँ सभी धर्म की दुकानें हैं। उनका काम भी बड़ा उपयोगी है।" अनुराग ने कहा।
विल को अनुराग का यह सवाल बहुत पसंद आया। वह उठकर उसके पास आया। क्लेयर ने नाराजगी में एटलांटिक सिटी में सब का साथ छोड़ दिया। शाम तक वह अकेले ही जुआ खेलती रही।
3
थकान के बावजूद संदीप बस में खुश था। बस भी आरामदेह थी। सड़क भी चौड़ी और खुली थी। आस- पास हरा-भरा मैदान या जंगल या जल का तेज बहाव देखकर भी उसे माहौल के बीच अपना वजूद सुखद लग रहा था। कहीं उसे मैदान में अपनी स्मृति का विस्तार, कहीं निकटता का घनत्व और मित्रों के बीच का सहज प्रवाह ताजा भी बना रहा है।
पैर संदीप के अगली सीट की पांत से कहीं दब रहे थे। कभी वह फँसी हुई अपनी टाँगों को समेटता था, कभी फैलाता है। सीटों के बीच जैसे उसकी टाँगें फँसी हों, वैसे ही वह अपनी पत्नी और मित्र के बीच में कहीं अटका महसूस कर रहा था। घुटने उसके दबे थे। अपने पैर को उसने सीधा करना चाहा। खिड़की के बाहर अनुराग घने जंगल की पांत को देख रहा था अनुराग की आँखें उसके चेहरे पर चमक रही थीं। उसने संदीप से कहा, "यहाँ सड़क के पड़ोसी हैं जंगल।"
संदीप ने जंगल में जल की धारा देखी। अनुराग की तरह जब वह अमेरिका आने का सपना देखता था, तो हरे जंगल में धँसे जल की तस्वीरें देख कर ही उसे खुशी होती थी। उसी स्मृति के फैलाव का संदीप ने यहाँ अनुभव किया। कहा, "दोस्त, जल अमेरिका में खूब हैं। नहरें भी बड़ी और आकर्षक हैं। पूरे अमेरिका में पानी एक सा सुलभ फिर भी नहीं है। कभी-कभी यहाँ भी सूखा पड़ा जाता है। उत्तरी अमेरिका तुम जा ही रहे हो, वहाँ तुम्हें दूर तक सूखे पहाड़ और बंजर जमीन मिलेगी। अमेरिका में उस जमीन के नीचे अणु प्रयोगशालाएँ हैं। कई छिपी धातुओं के खजाने भी हैं। जब सूखे पहाड़ों को देखोगे, तभी तुम्हें याद आ जाएगी यहाँ के आदिम रेड इंडियन की। उनके नाते ही आई है स्काई स्क्रीपट की सभ्यता। न्यूयार्क की 7वीं स्ट्रीक से हब्शी आज भी खुरदरे लगते हैं। सूखे पहाड़ देखने का यह अर्थ नहीं है कि यहाँ की जनवादी आग सारी फुक चुकी है। नीग्रो की आग असंतोष की आग कम होने को नहीं आई है।
संदीप के पास की सीट पर अनुराग बैठा था। दोनों पुराने मित्र हैं। सालों बाद मिले भी हैं। कभी दोनों को दिल्ली के कनाट प्लेस, में बिताई शाम के हँसी-ठहाके याद आ रहे थे। कभी दिल्ली में दोनों ऊँची आवाज़ में कैसी-कैसी बहसें किया करते थे। वह बहसें याद आ रही थीं।
अनुराग कभी उसके दफ्तर के किसी साथी की नकल उतारता था। कभी कुटज की गोद से उसके बच्चे प्रवीण को उठाकर संदीप चुहल करता था। विधान भी तब दिल्ली में साथ था। उसको तब भी गुस्सा आता था। वह गुस्से में धारा प्रवाह भाषण देने लगता था। दोनों मित्र फिर भी हैं। आज के विधान पर कुछ भी कहने से दोनों जरूर बच रहे थे।
विधान के चेहरे में आज आँखें ही आँखें हैं-एकदम घनी काली भौंहें। अनुराग ने पूछा "विधान की आँखों में देखा है। क्या भाव पहली बार छलकता है।" संदीप को झटका सा लगा। उसे लगा उसके सामने है विधान का चेहरा। जहाँ कहीं ओठों में वक्रता है घृणा दबी हो जैसे। कहीं क्रोध में चेहरा खिंचा-खिंचा सा लगता है। हाँ, उदासी भी आज उसके चेहरे पर नजर आ जाती है। उसने कहा, "घृणा और क्रोध के भाव भी उसके चेहरे पर आते हैं, पर आँखें जरूर उस समय भी उसकी तटस्थ रहती हैं। उसकी आँखें प्रेम के भाव से आज भी ओत-प्रोत रहती हैं। वह आँखों से ही मुखर हो उठता है।"
अनुराग ने गौर से संदीप का चेहरा देखा। आँखें उसकी भी मुखर थीं। ओठ हँसी से ओत प्रोत। भीतर कहीं वह दिल्ली की यादों को टार्च जलाकर जैसे देख रहा हो।
"क्या न्यूयार्क की स्काई स्क्रीपट की सभ्यता एक जंगल है ? इसी जंगल में विधान और तुम ऊँचे उठे रहे हो ?" अनुराग ने पूछा।
"विधान ने यहाँ आदमी बनाए हैं। विलियम वॉरमैरन को तुमने देखा है। वह उनका शिष्य है। यहाँ आदमी का ऊँचे उठना, स्काई स्क्रीपट की तरह सहज नहीं होता है। विधान इस सभ्यता को पॉकर सोसायटी (Poker Soeiety) कहता है।"
पैर संदीप के अगली सीट की पांत से कहीं दब रहे थे। कभी वह फँसी हुई अपनी टाँगों को समेटता था, कभी फैलाता है। सीटों के बीच जैसे उसकी टाँगें फँसी हों, वैसे ही वह अपनी पत्नी और मित्र के बीच में कहीं अटका महसूस कर रहा था। घुटने उसके दबे थे। अपने पैर को उसने सीधा करना चाहा। खिड़की के बाहर अनुराग घने जंगल की पांत को देख रहा था अनुराग की आँखें उसके चेहरे पर चमक रही थीं। उसने संदीप से कहा, "यहाँ सड़क के पड़ोसी हैं जंगल।"
संदीप ने जंगल में जल की धारा देखी। अनुराग की तरह जब वह अमेरिका आने का सपना देखता था, तो हरे जंगल में धँसे जल की तस्वीरें देख कर ही उसे खुशी होती थी। उसी स्मृति के फैलाव का संदीप ने यहाँ अनुभव किया। कहा, "दोस्त, जल अमेरिका में खूब हैं। नहरें भी बड़ी और आकर्षक हैं। पूरे अमेरिका में पानी एक सा सुलभ फिर भी नहीं है। कभी-कभी यहाँ भी सूखा पड़ा जाता है। उत्तरी अमेरिका तुम जा ही रहे हो, वहाँ तुम्हें दूर तक सूखे पहाड़ और बंजर जमीन मिलेगी। अमेरिका में उस जमीन के नीचे अणु प्रयोगशालाएँ हैं। कई छिपी धातुओं के खजाने भी हैं। जब सूखे पहाड़ों को देखोगे, तभी तुम्हें याद आ जाएगी यहाँ के आदिम रेड इंडियन की। उनके नाते ही आई है स्काई स्क्रीपट की सभ्यता। न्यूयार्क की 7वीं स्ट्रीक से हब्शी आज भी खुरदरे लगते हैं। सूखे पहाड़ देखने का यह अर्थ नहीं है कि यहाँ की जनवादी आग सारी फुक चुकी है। नीग्रो की आग असंतोष की आग कम होने को नहीं आई है।
संदीप के पास की सीट पर अनुराग बैठा था। दोनों पुराने मित्र हैं। सालों बाद मिले भी हैं। कभी दोनों को दिल्ली के कनाट प्लेस, में बिताई शाम के हँसी-ठहाके याद आ रहे थे। कभी दिल्ली में दोनों ऊँची आवाज़ में कैसी-कैसी बहसें किया करते थे। वह बहसें याद आ रही थीं।
अनुराग कभी उसके दफ्तर के किसी साथी की नकल उतारता था। कभी कुटज की गोद से उसके बच्चे प्रवीण को उठाकर संदीप चुहल करता था। विधान भी तब दिल्ली में साथ था। उसको तब भी गुस्सा आता था। वह गुस्से में धारा प्रवाह भाषण देने लगता था। दोनों मित्र फिर भी हैं। आज के विधान पर कुछ भी कहने से दोनों जरूर बच रहे थे।
विधान के चेहरे में आज आँखें ही आँखें हैं-एकदम घनी काली भौंहें। अनुराग ने पूछा "विधान की आँखों में देखा है। क्या भाव पहली बार छलकता है।" संदीप को झटका सा लगा। उसे लगा उसके सामने है विधान का चेहरा। जहाँ कहीं ओठों में वक्रता है घृणा दबी हो जैसे। कहीं क्रोध में चेहरा खिंचा-खिंचा सा लगता है। हाँ, उदासी भी आज उसके चेहरे पर नजर आ जाती है। उसने कहा, "घृणा और क्रोध के भाव भी उसके चेहरे पर आते हैं, पर आँखें जरूर उस समय भी उसकी तटस्थ रहती हैं। उसकी आँखें प्रेम के भाव से आज भी ओत-प्रोत रहती हैं। वह आँखों से ही मुखर हो उठता है।"
अनुराग ने गौर से संदीप का चेहरा देखा। आँखें उसकी भी मुखर थीं। ओठ हँसी से ओत प्रोत। भीतर कहीं वह दिल्ली की यादों को टार्च जलाकर जैसे देख रहा हो।
"क्या न्यूयार्क की स्काई स्क्रीपट की सभ्यता एक जंगल है ? इसी जंगल में विधान और तुम ऊँचे उठे रहे हो ?" अनुराग ने पूछा।
"विधान ने यहाँ आदमी बनाए हैं। विलियम वॉरमैरन को तुमने देखा है। वह उनका शिष्य है। यहाँ आदमी का ऊँचे उठना, स्काई स्क्रीपट की तरह सहज नहीं होता है। विधान इस सभ्यता को पॉकर सोसायटी (Poker Soeiety) कहता है।"
4
सागर किनारे की एक बैंच पर संदीप अनुराग के साथ बैठा है। विल ने दोनों की फोटो खींची है। दूर तक बालू का विशाल मैदान है। कहीं लोग सागर की लहरों में डूबते हैं और सागर उनको उदासीनता से देखता है। लहरें उन जल में डूबे हुए लोगों को घेर कर बह जाती हैं।
विल को लगा एक ऐसा ही खाली स्थान है उसके भीतर। क्या यही खोखली जगह उसकी आत्मा है। ऊपर जल की छत, चिकनी और लोचदार। नीचे बालू में धँसने का अंदाजा। दाँए-बाएँ जल का घेरा। यह जल के भीतर की झाड़ी है मेरी आत्मा। मैं उस खोखलेपन को कभी-कभी देख लेता हूँ, पर सूजी उसे देखकर भी अनदेखा कर देती है। अभी जब टीना ने कहा था, "संदीप, क्येलर से उदासीन है या क्लेयर के लिए संदीप का अस्तित्व ही नहीं है।" मैं जल के भीतर बैठा यही
महसूस कर रहा था। सूजी पारदर्शी जल में वहीं नजर आई थी। हम कभी साथ-साथ एक घर में रहे भी थे। ठीक पारदर्शी लोगों की इच्छाओं का छोटा-छोटा घर था अपना। उस जल की झाड़ी में बैठा मैं टीना और मोहन के घर पर सोच नहीं सका था। मन में शादी के बाद सूजी के साथ की जिंदगी की यादें कौंध गई थीं। उसे याद आया अभी उसने टीना से कहा था "कभी-कभी पत्नी से विराग रखना अच्छा रहता।" क्या यह विराग उसने कायम रखा है या सूजी ने ही उसे चार्ली चैपलीन की फिल्म का ‘ग्रेट डिक्टेटर’ मान लिया है। वह आज तक मुझे डिक्टेटर विल ही कहती भी है।"
विल सागर की लहरों को छूने चला गया। उसे नहीं पता था, बाबा या सूजी कौन उसे सागर के पास ले जा रहे हैं। जल में बनती आकृतियों जल के खाली घर, और जल की विवश बेचैनी में वह अपने लगाव की खोज करता रहा। जब थक जाता तो आँखें बंद कर लेता। ओठों पर राम राम राम का मंत्र...। वह बंद आँखों में भी सूजी को चलते, उसे पास बैठे महसूस करता। उसे लगा यह झूठ है, वह सूजी से विराग रखना चाहता है।
उसने खुद को समझना चाहा, "हर जर्मन हिटलर नहीं होता, वह हिटलर नहीं है।" सूजी ने एक दिन पूछा था, "that is a rape after all ?" क्यों पूछा तथा सूजी ने। विल ने कहीं पढ़ी हुई बात दुहरा दी थी "In America there is a rape every minuts. It`s common as drinking tea. One drinks tea and commited rape" सूजी ने पूरी ताकत से उसी दिन मुझे डाँटा था। मैं फिर भी उसके लिए निजी दायरे का एक ग्रेट डिक्टेटर बनता गया था।
बैंच पर बैठे अनुराग ने विल को देखा। संदीप ने कहा, "वह साधु है।" वह फिर भी अपनी ही डायरी जैसे पढ़ते रहे। अनुराग को गौर से देखा संदीप ने। उसे लगा, यह अनुराग है जिसे उम्र की ढलान की बेचैनी सालती नहीं है। एक नया बना घर जैसे जर्जर हो गया हो। कुछ भी नया, उन्मादक नहीं है उसके जीवन में। संदीप ने थकी हुई आवाज़ में स्वीकार किया" मैं तो मित्र, 55 साल के इस छोटे से जीवन में ही टूट गया हूँ।" अनुराग का प्रिय संगीत है
सागर की बजाई सिम्फनी। कई वाद्ययंत्र जैसे एक साज-बजा रहा हो सागर। वह सागर की टूटती-जुड़ती लहरों को देख रहा है। उसे लगा वरुण और इंद्र मिथ नहीं, वह सभ्यता का इतिहास हैं। कल वही जीवंत मिथ हमारी सभ्यता का हिस्सा था, आज हमारी सभ्यता से वह लुप्त हो चुका है। अब यहाँ अमेरिका में हैं। वह इस जीवन के हिस्सेदार हैं। एटलांटिक सिटी का सागरतट आज वरुण कन्याओं का तट है। हर आदमी, युवती यहाँ एक सागर है, कंपित लहरिल।
संदीप टूटा जर्जर मकान है। सागर तट के किनारे जहाँ ऊँची इमारतें हैं, सड़कें हैं, लोग उल्लास में मस्त हैं। वहाँ संदीप क्यों ठहरा हुआ जर्जर मकान लगता है। उसने देखा संदीप उससे इसी का उत्तर चाहता है।
अनुराग ने कहा, "मित्र यह सागर टूटता तो रोज ही है। एक दिन में हजार बार टूटता है। यह सागर तुम्हारे साथ चेस भी खेल सकता है। गार्वाचेव और बुश जैसे शतरंज खेल रहे हैं-ठीक वैसे ही, युधिष्ठिर ने कभी जुए की बाज़ी हारी थी, सागर जितना वृद्ध है, उतने वृद्ध न तुम हो न मैं हूँ। मेरे तो और विधान के गायक कवि निराला हैं। जो अपने एकांत में भी अप्रतिहत गरजते हैं। ताल देते हैं। हारकर भी हारते नहीं हैं। मैंने जब-जब विधान जैनेट और नियोमी के साथ उन्हें देखा, वह भरा पूरा सागर लगे थे मित्र। एक साथ कई वाद्ययंत्रों को बजाने, साधने वाला सागर। हाँ उन्हें भी अपने बूढ़ेपन का एहसास कई बार हुआ था। दरियागंज की संकरी गली में उनको ताल देते हुए तुमने नहीं देखा है। मैंने, विधान ने, नियोमी ने और जैनेट ने कई बार देखा है। उन्हें सुना है। वह अपने बूढ़ेपन को एक चित्रकार की तरह देखते थे। अपना आत्मचित्र वह रोज बनाते थे। यही ऊर्जा उनमें थी। यह सागर सी थी। अदम्य सृजनशील ऊर्जा। लिखा था निराला ने-
विल को लगा एक ऐसा ही खाली स्थान है उसके भीतर। क्या यही खोखली जगह उसकी आत्मा है। ऊपर जल की छत, चिकनी और लोचदार। नीचे बालू में धँसने का अंदाजा। दाँए-बाएँ जल का घेरा। यह जल के भीतर की झाड़ी है मेरी आत्मा। मैं उस खोखलेपन को कभी-कभी देख लेता हूँ, पर सूजी उसे देखकर भी अनदेखा कर देती है। अभी जब टीना ने कहा था, "संदीप, क्येलर से उदासीन है या क्लेयर के लिए संदीप का अस्तित्व ही नहीं है।" मैं जल के भीतर बैठा यही
महसूस कर रहा था। सूजी पारदर्शी जल में वहीं नजर आई थी। हम कभी साथ-साथ एक घर में रहे भी थे। ठीक पारदर्शी लोगों की इच्छाओं का छोटा-छोटा घर था अपना। उस जल की झाड़ी में बैठा मैं टीना और मोहन के घर पर सोच नहीं सका था। मन में शादी के बाद सूजी के साथ की जिंदगी की यादें कौंध गई थीं। उसे याद आया अभी उसने टीना से कहा था "कभी-कभी पत्नी से विराग रखना अच्छा रहता।" क्या यह विराग उसने कायम रखा है या सूजी ने ही उसे चार्ली चैपलीन की फिल्म का ‘ग्रेट डिक्टेटर’ मान लिया है। वह आज तक मुझे डिक्टेटर विल ही कहती भी है।"
विल सागर की लहरों को छूने चला गया। उसे नहीं पता था, बाबा या सूजी कौन उसे सागर के पास ले जा रहे हैं। जल में बनती आकृतियों जल के खाली घर, और जल की विवश बेचैनी में वह अपने लगाव की खोज करता रहा। जब थक जाता तो आँखें बंद कर लेता। ओठों पर राम राम राम का मंत्र...। वह बंद आँखों में भी सूजी को चलते, उसे पास बैठे महसूस करता। उसे लगा यह झूठ है, वह सूजी से विराग रखना चाहता है।
उसने खुद को समझना चाहा, "हर जर्मन हिटलर नहीं होता, वह हिटलर नहीं है।" सूजी ने एक दिन पूछा था, "that is a rape after all ?" क्यों पूछा तथा सूजी ने। विल ने कहीं पढ़ी हुई बात दुहरा दी थी "In America there is a rape every minuts. It`s common as drinking tea. One drinks tea and commited rape" सूजी ने पूरी ताकत से उसी दिन मुझे डाँटा था। मैं फिर भी उसके लिए निजी दायरे का एक ग्रेट डिक्टेटर बनता गया था।
बैंच पर बैठे अनुराग ने विल को देखा। संदीप ने कहा, "वह साधु है।" वह फिर भी अपनी ही डायरी जैसे पढ़ते रहे। अनुराग को गौर से देखा संदीप ने। उसे लगा, यह अनुराग है जिसे उम्र की ढलान की बेचैनी सालती नहीं है। एक नया बना घर जैसे जर्जर हो गया हो। कुछ भी नया, उन्मादक नहीं है उसके जीवन में। संदीप ने थकी हुई आवाज़ में स्वीकार किया" मैं तो मित्र, 55 साल के इस छोटे से जीवन में ही टूट गया हूँ।" अनुराग का प्रिय संगीत है
सागर की बजाई सिम्फनी। कई वाद्ययंत्र जैसे एक साज-बजा रहा हो सागर। वह सागर की टूटती-जुड़ती लहरों को देख रहा है। उसे लगा वरुण और इंद्र मिथ नहीं, वह सभ्यता का इतिहास हैं। कल वही जीवंत मिथ हमारी सभ्यता का हिस्सा था, आज हमारी सभ्यता से वह लुप्त हो चुका है। अब यहाँ अमेरिका में हैं। वह इस जीवन के हिस्सेदार हैं। एटलांटिक सिटी का सागरतट आज वरुण कन्याओं का तट है। हर आदमी, युवती यहाँ एक सागर है, कंपित लहरिल।
संदीप टूटा जर्जर मकान है। सागर तट के किनारे जहाँ ऊँची इमारतें हैं, सड़कें हैं, लोग उल्लास में मस्त हैं। वहाँ संदीप क्यों ठहरा हुआ जर्जर मकान लगता है। उसने देखा संदीप उससे इसी का उत्तर चाहता है।
अनुराग ने कहा, "मित्र यह सागर टूटता तो रोज ही है। एक दिन में हजार बार टूटता है। यह सागर तुम्हारे साथ चेस भी खेल सकता है। गार्वाचेव और बुश जैसे शतरंज खेल रहे हैं-ठीक वैसे ही, युधिष्ठिर ने कभी जुए की बाज़ी हारी थी, सागर जितना वृद्ध है, उतने वृद्ध न तुम हो न मैं हूँ। मेरे तो और विधान के गायक कवि निराला हैं। जो अपने एकांत में भी अप्रतिहत गरजते हैं। ताल देते हैं। हारकर भी हारते नहीं हैं। मैंने जब-जब विधान जैनेट और नियोमी के साथ उन्हें देखा, वह भरा पूरा सागर लगे थे मित्र। एक साथ कई वाद्ययंत्रों को बजाने, साधने वाला सागर। हाँ उन्हें भी अपने बूढ़ेपन का एहसास कई बार हुआ था। दरियागंज की संकरी गली में उनको ताल देते हुए तुमने नहीं देखा है। मैंने, विधान ने, नियोमी ने और जैनेट ने कई बार देखा है। उन्हें सुना है। वह अपने बूढ़ेपन को एक चित्रकार की तरह देखते थे। अपना आत्मचित्र वह रोज बनाते थे। यही ऊर्जा उनमें थी। यह सागर सी थी। अदम्य सृजनशील ऊर्जा। लिखा था निराला ने-
पके आधे बाल मेरे
हुएनिष्प्रभ गाल मेरे
चाल मेरी मंद होती जा रही
हट रहा मेला
हुएनिष्प्रभ गाल मेरे
चाल मेरी मंद होती जा रही
हट रहा मेला
यह सागर की और निराला की आत्मपरक कविता है। सेल्फ पोट्रेट है। संदीप ने बीच में उसे रोका "यहाँ अमेरिका में लोग बालों को रंगते हैं, विग लगाते हैं, अपनी अवस्था के प्रकृत रूप को ढँकते हैं। निराला जी यह नहीं करते थे। वह प्रेम और सौंदर्य में सफलता और कूटनीति की जरूरत नहीं महसूस करते थे। यहाँ स्त्री-पुरुष के बीच सफलता और कूटनीति जरूरी है। किसी ने कहा है " a successful journalist is a diplomet" यहाँ का पत्रकार, नेता, व्यापारी और प्रेम सभी सफल डिप्लोमेट होते हैं। निराला ईसा बुद्ध को ऐसी सफलता प्रिय नहीं थी। वह संत थे।
मैंने यहाँ रहते हुए देखी है अपनी उथल-पुथल भरी जिंदगी। रातें अशांति में काटी हैं। दीवारें मुझे ऐसे समय यह बताती हैं मैं कितना अकेला, कितना बेचैन हूँ। मेरी जिंदगी में ऐसा कोई नहीं है, जिससे मैं मन की बातें कर सकूँ। मेरा मन तुमसे अपनी बात कहने को छटपटाता रहा है।"
मैंने यहाँ रहते हुए देखी है अपनी उथल-पुथल भरी जिंदगी। रातें अशांति में काटी हैं। दीवारें मुझे ऐसे समय यह बताती हैं मैं कितना अकेला, कितना बेचैन हूँ। मेरी जिंदगी में ऐसा कोई नहीं है, जिससे मैं मन की बातें कर सकूँ। मेरा मन तुमसे अपनी बात कहने को छटपटाता रहा है।"
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लोगों की राय
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